यह दुनिया का एक ऐसा मजहब है जो पूरे दुनिया में फैला हुआ है और यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मजहब बनकर उभरा है| इस्लाम क्या है
इसकी इब्तिदा (सुरुआत) हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से हुई जो इस दुनिया के पहले इंसान थे और इस्लाम की तकमील 1400 साल पहले हुई थी
अल्लाह ने अपने नबी हज़रत मोहम्मद ﷺ को पूरी दुनिया के लिए रहमत बना कर भेजा | इस्लाम के अनुसार अल्लाह एक है और हज़रत मोहम्मद ﷺ अल्लाह के आखरी नबी हैं
कलमा:-
1. इस्लाम में एक कलमा है
"لا الہ الا اللہ محمد، الرسول اللہ" ﷺ
ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर रसूल अल्लाह ﷺ
तर्जमा :- अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं है हज़रत मोहम्मद ﷺ अल्लाह के रसूल हैं ( इसे कमला ऐ तौहीद भी कहा जाता है)
2. दूसरा कलमा:- जिसे कलमा-ऐ- शहादत भी कहा जाता है
اَشْهَدُاَنْ لاَّ ۤاِلهَ اِلاَّ اللهُ وَحْدَه‘لاَشَـِريْكَ له‘ وَاَشْهَدُاَنَّ مُحَمَّـدًاعَبـْدُه‘ وَرَسُوْلُه
यह इस्लाम के बुनियादी अकाईद का इकरार है
दीन-ऐ-इस्लाम में इंसानियत, इन्साफ, और सबर को बहुत अहमियत दी गयी है
इस्लाम के पांच सुतून (स्तंभ) हैThe Five Pillers Of Islam:-
- ईमान
- नमाज़
- ज़कात
- रोज़ा
- हज़
यह केवल एक धर्म ही नहीं बल्कि जीवन जीने का एक बेहतरीन तरीका भी है। जो इंसान को अपनी जिंदगी का हर फैसला अल्लाह की सल्तनत और हक के मुताबिक करने की सलाह देता है इस्लाम धर्म दुनिया में शांति और न्याय का संदेश देता है, आज हम इस्लाम को बहुत गहराई से पढ़ेंगे और समझेंगे ताकि हम इस्लाम के बारे में अच्छे से जान सकें और अपनी गलत फहमियों को दूर कर सकें।
इस्लाम दुनिया का पहला मजहब है?
इस्लाम जो इस दुनिया में सबसे पहले इंसान का धर्म था, चौदह सौ साल पहले नए शरिया कानून के साथ पूरा हुआ। यहां वह मिथ्या आपत्ति स्वतः ही समाप्त हो जाती है, जो देश के भाई अपने धर्म का पांच हजार वर्ष का इतिहास बताकर इस्लाम को एक नया धर्म सिद्ध करने का प्रयास करते हैं और कहते हैं कि इस्लाम से पहले लोग किस धर्म का पालन करते थे?
इसका उत्तर यह है कि यहां आपत्ति की कोई गुंजाइश नहीं है क्योंकि इस्लाम चौदह शताब्दी पहले ही पूरा हो चुका है,
“الیوم اکملت لکم دینکم” (“अल यौम अक मलतु लकुम दीनकुम “)
तर्जुमा :- आज मैंने तुम्हारे लिए तुम्हारा धर्म मुकम्मल कर दिया है कुरान इसकी घोषणा करता है। इस्लाम आदम अलैस्स्लालम से चला आ रहा है जो प्रागैतिहासिक (अज्ञात काल) काल से हैं।
तौहीद,रिसालत,आखिरत
तौहीद, रिसालत और आखिरत इस्लाम के मरकजी तसव्वुर हैं।
तौहीद:-खुदा के वजूद का यकीन है, जो कई माबूदों के इमान और खुदा के इनकार जैसी हदों के बीच अकली बुनियाद पर कायम है।
रिसालत (पैग़म्बरी ):-
रिसालत (पैग़म्बरी ):-इस बात पर ( ایقان) विश्वास का नाम है कि हमें पैदा कर के जरुरियाते जिंदगी से नवाजने वाले खालिक और मालिक ने हमें अँधेरे में भटकते छोड़ने के बजाये अपने चुनिन्दा बन्दों के जरिये हिदायत का रोशन रास्ता दिखाया है |
आखिरत:-
आखिरत:- आखिरत को मानना इस लिए भी जरूरी है की इंसान بابر بہ عیش کوش के आलम दोबारह نیست’ पैदा न किये जाने पर कान धरने के बजाये अपने (تخلیق) तखलीख के मकसद को तलाश करे और खुदा के मखलूक के लिए भलाई का सामान पैदा करे
खलिक के सामने जवाब देही के खौफ से फिरोन बनने से बाज रखे और वह दौलत,शोहरत,रूतबा हासिल कर के कमजोर इंसान को कीड़ा मकोड़ा समझने की नादानी न कर बैठे | तमाम जानदारों के मरने और कायनात (दुनिया ) ख़तम हो जाने के बाद एक अदालत कायम होने की बात समझ से परे है ?

रुकिए !(Stop)!
अभी इस की जरुरत का अंदाज़ा हो जायेगा-न्यूज़ीलैंड में एक कट्टरपंथी ने मस्जिद में नमाज के लिए जमा होने वाले 50(पचास ) नमाजियों को गोली मर कर बर्बरता से हत्या कर दी और साहस के साथ इसे सोशल मीडिया पर लाइव परसारित किया | इंसानियत और अमन का नारा देने वाले लोग इस पर चुप रहे और एक हादसा समझ कर भुला दिया गया हालंकि उसे गिरफ्तार कर जेल की दीवार के पीछे डाल दिया जाता है और अदालती कार्यवाही शुरू हो जाती है।
वह हत्यारा था, अपराध क्या था, सजा तो मिलेगी। ज्यादा से ज्यादा उसे फाँसी हो जायेगी। सवाल यह है कि क्या पचास जिंदगियों का बदला लिया जा चुका है? यह तो बस एक खून का कफ्फारा हुआ | बाकि उनचास 49 जिंदगियो को इन्साफ कैसे मिलेगा ?क्या दुनिया की कोई सजा सचमुच इस अपराध जितना सजा दे सकती है जवाब है नहीं !
जब इतने लोगो को मार कर अपनी एक जान देनी ही है तो खुनी दरिंदो के नजदीक इस सौदे में कोई घाटा नहीं है –यहाँ आखिरत ( मरने के बाद खुदा के सामने अपने कर्मो का जाब देना ) का तसौवर दुनिया को अमन का गहवारा बनाने की सबसे बड़ी आशा के रूप में देखा जाता है
इस्लाम के अरकान :-
इस्लाम के पांच अरकान हैं; कलमा , नमाज़, रोज़ा, ज़कात और हज। इबादत के ये पांच कार्य अल्लाह के साथ रिश्ते को मजबूत करते हैं और व्यक्तिगत सुधार की प्रक्रिया को संभव बनाते हैं।
इसके अलावा सामजिक मेल जोल आपसी इतिहाद वा भाईचारा का बेहतरीन जरिया हैं गुर्बतो पस्मंदगी (पिछडापन ) को दूर करने के लिए जकात से बेहतर कोई आर्थिक वाव्स्था नहीं है | अन्य विचारधाराओं और धर्मों की तुलना में, इस्लामी इबादत और आदेशों में बेतुके संस्था शामिल नहीं हैं, जैसे कि पत्थर पर दूध डालना, या मानव सहनशक्ति से परे कार्य, जैसे इश्वर को पाने के लिए एक हड्डी का ढांचा (कंकाल ) बनजना वगैरा इस्लाम में ऐसी चीएजे बिलकुल भी शामिल नहीं है और न ही इस्लाम इसकी इजाजत देता है
इस्लाम के पैग़ंबर हज़रत मुहम्मद ﷺ का किरदार तारिख में महफूज और आप के जरिये लाया गया इन्कलाब (क्रांति ) आज भी लोगो को आश्चर्यचकित करती है
जब की दुसरे धर्मो के पवित्र व्यक्तित्य की जिनका वजूद यकीन के लायक नहीं है तारिख उनके बारे में खामोश है देउमलाई के दास्तान का गुमान होता है
लेकिन इस्लाम के पैगंबर ﷺ की सच्चाई, इन्साफ ,मानव प्रेम के बारे में गैर-मुस्लिम भी मानते हैं आप की ज़िन्दगी के हर वाकिये को बहुत ही सावधानी से लिखा गया है जिसमे शक की कोई गुंजाइश नहीं है यहां तक कि छोटी से छोटी जानकारी भी आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित की गई है। उनका जीवन और आपका काम पर्दे के पीछे छिपा नहीं है।”
(Muhammad : The Prophet of Islam By Pro. K. S. Rama Krishna rao , page no 07) Continue
MASHAALLAH
Shukariya Sir
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