शबे बरात का परिचय-(Introduction)
शबे बरात इस्लाम में कुछ रातों को विशेष दर्जा दिया गया है, और उन्हीं में से एक है शबे बरात। यह रात इस्लामी कैलेंडर के शाबान महीने की 15वीं रात को आती है और इसे रहमत, माफी और बरकत की रात माना जाता है। इस्लामी मान्यता के अनुसार,साल भर में होने वाले सभी कार्य ,जैसे मरने वालों की तादाद ,पैदा होने वालों की,कीतना रिज़क़ मिलेगा सबको लौहे महफूज़ से फरिशतों को नोट कराया जाता है ,रब अपने बंदो के गुनाहों को माफ करता है और उन्हें अपनी रहमत से नवाजता है।
इस ब्लॉग में हम शबे बरात का महत्व, इसके पीछे की हदीसें, इस रात की इबादतें, आम गलतियां और इससे जुड़ी सच्चाइयों को विस्तार से समझेंगे।
शब-ए-बरात की फज़ीलत-Benefits of Shab-E-Baraat
“हा मीम। उस रोशन किताब की क़सम! हमने उसे एक बरकत वाली रात में उतारा, बेशक हम डर सुनाने वाले हैं। इस रात में हर हिकमत भरा काम तकसीम कर दिया जाता है, हमारे पास से हुक्म आता है। बेशक हम ही रसूल भेजने वाले हैं।” (सूरह अद-दुखान: आयत 1-5, पारा 25) उलमा-ए-कराम के मुताबिक, इस “बरकत वाली रात” से मुराद शबे बरात है।
शब-ए-बरात की फज़ीलत कुरआन और हदीस की रोशनी में
इस रात को बरकतों, रहमतों और इनामों की रात कहा गया है। सुरह अद-दुखान की पहली आयतों में इसकी फज़ीलत को बयान किया गया है:
“हा मीम। उस साफ़ वाजे़ह किताब की क़सम! हमने उसे एक बरकत वाली रात में उतारा, बेशक हम डराने वाले हैं। इस रात में हर हिकमत वाले काम का फैसला कर दिया जाता है।” (सुरह अद-दुखान: आयत 3-4)
शबे बरात का अर्थ और नामकरण (Meaning and Naming of Shab-e-Barat)
अरबी भाषा में “शब” का अर्थ होता है रात और “बरात” का अर्थ होता है मुक्ति। इसलिए शबे बरात का अर्थ होता है – मुक्ति या माफी की रात।
शबे बरात को अन्य नामों से भी जाना जाता है:-
लैलतुल बराह (लैलतुल बरात) – माफी की रात
लैलतुल मुबारका – बरकतों की रात (गुनाहों से निजात की रात)
लैलतु स्सक – दस्तावेज़ वाली रात (तक़दीर लिखे जाने की रात)
लैलतु र्रहमा। – अल्लाह पाक की रहमते खा़स्सा के नुजू़ल की रात
इस रात को गुनाहों से छुटकारा पाने और नई तक़दीर बनने की रात माना जाता है। यही कारण है कि इस्लामी दुनिया में इसे बहुत ही महत्वपूर्ण रातों में गिना जाता है।
शब-ए-बरात फैसलों की रात है -Shab-e-Baraat is the Night of Decisions
कुरआन में आया है:
“इस रात में हर हिकमत वाले काम का फैसला कर दिया जाता है।” (सुरह अद-दुखान: 4)
यह रात को मफैसलों की रात भी कही जाती है। हदीस में आता है कि इस रात साल भर के तमाम मामलों का फैसला होता है, जिसमें रिज़्क, मौत, और नई ज़िंदगी लिखी जाती है।
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ि.) फरमाते हैं:
“शब-ए-बरात में तमाम फैसले होते हैं।”
उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा सिद्दीक़ा (रज़ि.) से रिवायत है:
“नबी-ए-करीम ﷺ ने फरमाया: अल्लाह तआला चार रातों में भलाई के दरवाजे खोल देता है:”
- 1. बकरीद की रात
- 2. ईद-उल-फितर की रात
- 3. शब-ए-बरात (15वीं शाबान की रात)
- 4. अरफा की रात (9वीं ज़िलहिज्जा की रात)

शबे बरात की फज़ीलत (Importance and Virtues of Shab-e-Barat)
हदीसों में शबे बरात का ज़िक्र:-
हदीसों में शबे बरात की बहुत सी फज़ीलतें बताई गई हैं। एक हदीस में हज़रत आयशा (रज़ि.) फरमाती हैं:
“एक बार मैंने देखा कि रात के समय नबी ए करीम ﷺ घर में नहीं थे। मैं उन्हें ढूंढने निकली तो देखा कि वे जन्नतुल बक़ी (कब्रिस्तान) में थे और अपनी उम्मत के लिए दुआ कर रहे थे।” (सुनन इब्न माजा)
- अल्लाह तआला इस रात में अपनी रहमत के दरवाजे खोल देते हैं।
- जो व्यक्ति दिल से तौबा करता है, उसके पिछले गुनाह माफ कर दिए जाते हैं।
- इस रात अल्लाह तआला बहुत सारे लोगों की तक़दीर को बेहतर करते हैं।
- फरिश्ते अल्लाह के हुक्म से पूरी कायनात में घूमते हैं और नेकियों को लिखते हैं।
शब-ए-बरात में बख्शिश और गुनाहों से निजात-Forgiveness and relief from sins in Shab-e-Baraat
हज़रत आयशा (रज़ि.) फरमाती हैं:
“नबी-ए-पाक ﷺ ने फरमाया: ‘जब शब-ए-बरात आती है, तो जिब्रईल (अलैहिस्सलाम) मेरे पास आए और कहा: यह 15वीं शाबान की रात है, इस रात अल्लाह जहन्नम से उतने लोगों को आज़ाद करता है जितने बनी कल्ब कबीले की बकरियों के बाल हैं। लेकिन…”
- काफिर (जो अल्लाह का इंकार करते हैं)
- अदाावत (दुश्मनी) रखने वाले
- रिश्ते तोड़ने वाले
- तकब्बुर (गुरूर) करने वाले
- वालिदैन की नाफरमानी करने वाले
- शराबी (शराब पीने वाले)
शब-ए-बरात में मौत,जिंदगी और रिज़्क का फैसला:-हर साल शब-ए-बरात में इंसानों की जिंदगी, मौत और रिज़्क का फैसला होता है। हदीस में आता है:
हज़रत आयशा (रज़ि.) से रिवायत है:-
"मैंने रसूलुल्लाह ﷺ से पूछा कि इस रात में क्या होता है? तो आप ﷺ ने फरमाया: इस रात में आने वाले साल में पैदा होने वाले लोगों के नाम लिख दिए जाते हैं, और इस साल मरने वालों के नाम भी तय कर दिए जाते हैं। इसी रात में लोगों के आमाल पेश किए जाते हैं और उनके रिज़्क का फैसला किया जाता है।"
इस रात की खास इबादतें (Special Worship on Shab-e-Barat)
शबे बरात की रात को इबादत, दुआ और तौबा के लिए बहुत खास माना जाता है। इस रात को बंदे को चाहिए कि वह अल्लाह की रहमत और माफी हासिल करने के लिए पूरी तरह इबादत में मशगूल रहे।
- शबे बरात की रात नफिल नमाज़ पढ़ना बहुत फज़ीलत वाला अमल है।
- कुछ सुन्नत अमल इस प्रकार हैं:
- दो रकात नमाज़ पढ़ें और हर रकात में सूरह फातिहा के बाद 3 बार सूरह इखलास पढ़ें।
- सौ रकात नमाज़ पढ़ना भी मुस्तहब है, जिसमें हर रकात में सूरह फातिहा के बाद 10 बार सूरह इखलास पढ़ी जाए।
- कुरआन की तिलावत
- रात में कुरआन की तिलावत करना बहुत सवाब का काम है। खासकर सूरह यासीन, सूरह रहमान, और सूरह मुल्क की तिलावत करें।
- तौबा और अस्तग़फार
- अल्लाह से सच्चे दिल से अपने गुनाहों की माफी मांगनी चाहिए।
- 100 बार “अस्तग़फिरुल्लाह रब्बी मिन कुल्ली ज़ंबिन” पढ़ना चाहिए।
- दरूद शरीफ की ज्यादा से ज्यादा तिलावत करनी चाहिए।
गरीबों और ज़रूरतमंदों की मदद:-
इस्लाम में सदक़ा देने को बहुत बड़ी नेकी बताया गया है।
इस रात गरीबों को खाना खिलाना, कपड़े देना और जरूरतमंदों की मदद करना चाहिए।
कब्रिस्तान जाना:-पैगंबर मुहम्मद ﷺ शबे बरात की रात जन्नतुल बकी कब्रिस्तान जाकर वहां दुआ किया करते थे।कब्रिस्तान जाकर अपने मरहूम रिश्तेदारों के लिए माफी और मगफिरत की दुआ करनी चाहिए।
शबे बरात पर की जाने वाली गलतियां (Common Mistakes on Shab-e-Barat)
इस रात को कुछ लोग गलत तरह से मनाते हैं, जो इस्लाम के अनुसार सही नहीं है।
पटाखे जलाना और इसे त्योहार की तरह मनाना
गलियों में शोर करना
अपने किसी भी काम से दूसरों को तकलीफ देना
सिर्फ एक रात इबादत करना और पूरे साल लापरवाह रहना
शबे बरात की सच्ची हकीकत (Reality of Shab-e-Barat)
इस रात को लेकर कई गलत धारणाएं प्रचलित हैं,जैसे:-
कुछ लोग कहते हैं कि इस रात की इबादत अनिवार्य है, जबकि यह मुस्तहब (रुचिकर) है।
कुछ लोग शबे बरात को शब-ए-क़द्र समझते हैं, जबकि यह दोनों अलग-अलग रातें हैं।
हलवा खाना और बनाना एक अच्छी चीज़ है, लेकिन इसे फर्ज़ या वाजिब समझना गलत है।
शबे बरात के दिन के रोज़े का महत्व (Fasting on the Day After Shab-e-Barat)
हदीस में आता है कि पैगंबर मुहम्मद ﷺ शाबान महीने में ज्यादा से ज्यादा रोज़े रखा करते थे। शबे बरात के अगले दिन (15 शाबान) का रोज़ा रखना सुन्नत है।

शबे बरात का इस्लामिक महत्व-Islamic importance of Shabe Barat
शबे बरात का ज़िक्र कुरआन और हदीस में मिलता है। इस्लाम के विद्वानों के अनुसार, यह रात मगफिरत (गुनाहों की माफी) और तक़दीर के फैसले की रात होती है।
कुरआन में शबे बरात का ज़िक्र
कुरआन में सूरह अद-दुखान (44:3-4) में आता है:-
"हमने इस किताब को एक बरकत वाली रात में उतारा है। बेशक, हम (अल्लाह) लोगों को सचेत करने वाले हैं। इस रात हर हिकमत वाली बात का फैसला किया जाता है।"
इस आयत की तफ़सीर में कुछ उलमा का मानना है कि यह रात शबे बरात की तरफ इशारा करती है, जबकि कुछ अन्य उलमा इसे शब-ए-क़द्र से जोड़ते हैं। लेकिन यह तय है कि इस रात में अल्लाह अपने बंदों की तक़दीर का फैसला करता है।
शबे बरात की फज़ीलत हदीसों की रोशनी में The virtues of Shab-e-Barat in the light of Hadiths
गुनाहों की माफी की रात:- पैगंबर मुहम्मद ﷺ ने फरमाया:-
“जब शाबान की 15वीं रात आती है, तो अल्लाह तआला आसमान-ए-दुनिया पर नजर फरमाते हैं और बकरी की ऊन के बराबर (यानि बहुत ज्यादा) लोगों को बख्श देते हैं।”(अत-तबरानी, बयहकी)
कब्रिस्तान में जाकर दुआ करना -Go to The Cemetery and Pray
हज़रत आयशा (रज़ि.) से रिवायत है:
“मैंने एक रात नबी ﷺ को अपने बिस्तर पर न पाया। मैंने उन्हें खोजा तो देखा कि वे जन्नतुल बकी (कब्रिस्तान) में थे और अपनी उम्मत के लिए मगफिरत की दुआ कर रहे थे।”(सुनन इब्न माजा)
तक़दीर का फैसला होता है-
हज़रत इक्रमा (रज़ि.) फरमाते हैं:-
“शबे बरात में अगले साल होने वाली मौतों, पैदा होने वाले बच्चों और मिलने वाले रिज़्क का फैसला कर दिया जाता है।”
इस रात की इबादतें (Worship in Shab-e-Barat)
शबे बरात को इबादत, दुआ और मगफिरत के लिए खास तौर पर मनाया जाता है। कुछ अहम इबादतें इस प्रकार हैं:
कुरआन की तिलावत-Quran recitation
इस रात ज्यादा से ज्यादा कुरआन पढ़ना चाहिए।
खासतौर पर:-
सूरह यासीन,सूरह मुल्क, सूरह रहमान
अस्तग़फार (गुनाहों की माफी मांगना)
“अस्तग़फिरुल्लाह रब्बी मिन कुल्ली ज़ंबिन” 100 बार पढ़ें।
“ला इलाहा इल्लल्लाह, मुहम्मदुर रसूलुल्लाह” ज्यादा से ज्यादा पढ़ें।
दरूद शरीफ पढ़ना
कम से कम 100 बार दरूद शरीफ पढ़ना चाहिए।
“सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम” पढ़कर नबी-ए-करीम ﷺ पर सलाम भेजें।
दुआएं करना
अपनी और अपने परिवार की भलाई के लिए दुआ करें।
गुनाहों की माफी, सेहत, रिज़्क, और नेक तक़दीर के लिए दुआ करें।
शबे बरात पर की जाने वाली गलतियां – Mistakes made on shab-e-barat
कुछ लोग इस रात को गलत तरीके से मनाते हैं, जो इस्लामिक शिक्षाओं के खिलाफ है।
पटाखे फोड़ना और शोर मचाना – Bursting crackers and making noise
कुछ जगहों पर लोग पटाखे फोड़कर शबे बरात को जश्न की रात बना देते हैं, जो इस्लाम में जायज नहीं है।
हलवा बनाना और इसे जरूरी समझना – Making pudding and considering it necessary
हलवा बनाना कोई गलत बात नहीं, लेकिन इसे इस रात का अनिवार्य हिस्सा समझना गलत है।
कब्रों पर ज़रूरत से ज़्यादा चादर चढ़ाना और वहां सजदा करना गलत है
कब्रिस्तान जाना सुन्नत है, लेकिन कब्रों पर सजदा करना, मजारों का तवाफ़ करना और वहां पर अन्य बुरे काम करना इस्लाम में जायज नहीं है।
सिर्फ एक रात इबादत करना – pray just one night
सिर्फ इस रात इबादत करना और पूरे साल लापरवाह रहना सही तरीका नहीं है।
शबे बरात और रोज़े की अहमियत – Comes in Hadith
शबे बरात की रात के बाद वाले दिन (15 शाबान) का रोज़ा रखना बहुत सवाब का काम है।
हदीस में आता है:-“जब शाबान का महीना आता, तो नबी-ए-करीम ﷺ ज्यादा रोज़े रखा करते थे।”
(सहीह बुखारी, मुस्लिम)
रोज़े के फायदे – Benefits of Fasting
अल्लाह की रहमत और बरकत मिलती है।
तक़दीर में भलाई का फैसला किया जाता है।
नतीजा (Conclusion)
शबे बरात तौबा, इबादत और दुआ की रात है। इस रात अल्लाह तआला अपने बंदों की तक़दीर का फैसला करते हैं और उन्हें रहमत से नवाजते हैं। हमें चाहिए कि इस रात को ज्यादा से ज्यादा इबादत में बिताएं, अल्लाह से माफी मांगें और नेकियों में आगे बढ़ने की कोशिश करें।
अल्लाह हम सबकी मगफिरत फरमाए और हमें नेकियों की तौफीक अता करे। आमीन!