इस्लाम का परिचय – Introduction of Islam

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इस्लाम मात्र दुनिया का एक ऐसा धर्म है | जो पूरी दुनिया में अपने पैगम्बर मुहम्मद  के जरिए फैला l इस्लाम दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है और 1.9 अरब से अधिक लोग दुनिया में इस्लाम का पालन करते हैं। इस धर्म के लोग अल्लाह को एक मानते है और पैगंबर मुहम्मद को अल्लाह का रसूल मानते है। इस्लाम का पैगाम सिर्फ एक तबके के लिए नहीं बल्कि पूरी दुनिया को जीवन जीने का तरीका बताता है।

इस्लाम का इतिहास-(History of Islam)

पैगम्बर हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से इस्लाम की शुरूआत हुई है जो दुनिया के पहले इंसान थे 

इस्लाम का एक ही कलमा है:-

 لا الہ الا اللہ محمد،  الرسول اللہ ﷺ
 तर्जुमा: अल्लाह के सिवा कोई माबूद नही,हज़रत मोहम्मद ﷺ अल्लाह के रसूल हैं

इस्लाम एक ऐसे धर्म को कह्ते है जो पैगम्बर मोहम्मद की सुन्नत व शरियत के साथ आज भी ज़िंदा है इस्लाम इंसाफ, इंसानियत और सब्र का पैगाम देता है हज़रत मोहम्मद  ने अपनी ज़िंदगी में इंसाफ को बड़ी अहमियत दी l इन्सानी हुकूक को बढ़ावा दिया l और हमेशा सबर के साथ आगे बढ़ते रहे l

इस्लाम का बुनयादी यकीन-(Fundamental Beliefs of Islam) 

तौहीद-(Tawheed)

इस्लाम की पहली और अहम तरीन फ़िक्र तौहीद है | जो अल्लाह की वहदानियत पर यकीन रखता है | इस्लाम में सिर्फ एक खुदा है उसका कोई शरीक नहीं | यह फ़िक्र इस्लाम की तमाम अकाईद की बुनियाद है | तौहीद के माने सिर्फ एक अल्लाह की इबादत करना और उस के साथ किसी को शरीक न करना |

नुबुवत-(NUBUWAT)

 पैगम्बरी को इस्लाम में भी एक अहम् मुकाम हासिल है | अल्लाह ने अपने पैगम्बरों के जरिये इंसानों को हिदायत दी | अल्लाह ने हज़रत मोहम्मद    को आखरी रसूल बनाया | जो दुनिया के लिए रहमत और हिकमत का पैगाम ले कर आये | हज़रत मोहम्मद   का पैगाम रहती दुनिया तक तमाम इंसानों के लिए बाइसे रहमत है

इस्लाम में आख़िरत को बहुत अहमियत दी गयी है। इस्लाम के मुताबिक हर इंसान अपने आमाल का हिसाब देने के लिए अल्लाह के सामने खड़ा होगा । अगर इंसान ने अच्छे काम किये हैं तो उसे जन्नत मिलेगी। और अगर उसने बुरे काम किये हैं तो उसको सजा मिलेगी । आख़िरत का ख्याल इंसान को अपने आमाल को बेहतर बनाने का तरीका बताता है।

इस्लाम के पांच स्तंभ-(Five Pillars of Islam)

इस मजहब के पांच(5) बुनयादी सुतून (ढांचा) हैं जिन पर हर मुसलमान को अपनी जिंदगी में अमल करना चाहिए ।

कलमा :- इस्लाम का पहला सुतून है 

 لا الہ الا اللہ محمد،  الرسول اللہ” ﷺ तर्जमा:- अल्लाह के सिवा कोई माबूद (इबादत करने योग) नहीं और मोहम्मद अल्लाह के रसूल हैं

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नमाज इस्लाम का दूसरा सुतून है। हर मुसलमान को रोजाना पांच वक़्त नमाज पढ़ना  जरूरी है । नमाज अल्लाह के साथ ताल्लुक कायम करने का एक बेहतरीन तरीका है और मुसलमानों को अल्लाह के साथ जुड़े रहने का एक अच्छा रास्ता है।

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ज़कात इस्लाम का तीसरा सुतून है। जो गरीबों की मदद का एक जरिया है। ज़कात हर उस शख्स पर फ़र्ज़ है जो मालिके निसाब है वो अपने माल का 2.5 % हिस्सा गरीबों को दे । ये सदका सिर्फ पैसे देने तक महदूद नही है। बल्कि मुआशरे में इंसाफ और बराबरी लाने की कोशिश है।.

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जो कि रमजान के महीने में रखा जाता है इस्लाम का चौथा सुतून है । मुसलमान अपनी रूहानी सफाई के लिए रमजान के महीने में रोज़ा रखते हैं रोज़ा अपने आप पर काबू पाने और अपने रूह को पाक करने का एक तरीका है ।

हज इस्लाम का पांचवा सुतून है । जो तमाम मुसलमानों के लिए लाज़मी है। जिनके पास इस सफर के लिए माली और जिस्मानी तौर पर उसे अंजाम दे सकते हैं। हज के अरकान  मक्का शरीफ में अदा किए जाते हैं । और ये एक अजीम इबादत है जो मुसलमानो के इत्तिहाद और यकजहती को जाहिर करती है ।

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इस्लाम की बुनियादी तालीम इंसानियत , इंसाफ ,सबर और अमन का पैगाम देती है | इस्लाम का मकसद अल्लाह की मर्जी के मुताबिक जिंदगी गुजारना है |

1. तमाम लोगों की इज्जत :- Respect for All People:

इस्लाम तमाम लोगों को इज्जत व अदब का दर्श देता है चाहे वो मुस्लमान हो या ना हो | इस्लाम हर इंसान को बराबर समझता है और सब को इज्जत देने की बात करता है

इन्साफ और इंसानियत इस्लाम के वसूलों में से एक है | इस्लाम हर इंसान को चाहे वो अमीर हो या गरीब सभी को इन्साफ देने की बात करता है | इस्लाम में किसी से भी नाइंसाफी या नफरत करना मना है |

जिसका मतलब है सबर और इस्तिकामत , इस्लाम में एक अहम् सोच है | इस्लाम हर शख्स को मुसीबतों और कठिनाईयों का सामना करते वक़्त सबर करने की ताकीद करता है |

इस्लाम अमन व शांति का पैगाम देता है | इस्लाम में ऐसा कोई काम नहीं जिस से दूसरो को तकलीफ पहुचे | इस्लाम का पैगाम दुनिया में अमन व शांति का दुसरा नाम है |

इस्लाम के बारे में अक्सर गलत फहमियां पैदा की जाती है कुछ लोग इस्लाम को मजहबी दहशत गर्दी से जोड़ते हैं l लेकिन सच्चाई यह नहीं है कि इस्लाम का असल पैग़ाम अमन और शांति है l पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद ने अपनी ज़िन्दगी में कभी जुल्म या दहसत गर्दी को इख्तियार नही किया l

इस्लाम ने दुनिया को बहुत से अहम इल्म और इजादात दी है l जो आज भी हमारे जिंदगी का अहम हिस्सा हैं l जब हम इस्लाम के कदीम दौर और इस के फलसफा , विज्ञान , कला , और तिब्बी मैदानों में की गयी खिदमत पर नजर डालते हैं l तो हमे एक ऐसे मुआशरे का पता चलता है जहां इल्म व हिकमत को सब से ज्यादा अहमियत दी जाती है l इस्लाम ने न सिर्फ मजहबी और रूहानी जिंदगी को मुतासिर किया है बल्कि दुनिया की तरक्की को भी मुतास्सिर किया है 

इस्लामी सुनहरे दौर को एक ऐसे दौर के तौर पर जाना जाता है जब मुसलमान उलमा और साइंसदानों ने दुनिया को बहुत सी अजीम इजादात दिए और बहुत से क्षेत्रों में नए ज्ञान का विकास किया l यह दौर 8th सदी से 14th सदी तक जारी रहा और इस दौर मे इस्लाम ने विज्ञान, सायकोलोजी, कला,आर्किटेक्चर और मेडिकल साइंस में अपना हिस्सा डाला l

इस्लामी ने विज्ञानं और गणित में बहुत बड़े योगदान दिए है | मुस्लमान साइंसदानों ने पुरानी ग्रीक और रोमी इल्मो को अपनाया और इस में अपनी खोज और अविष्कार किये | इस्लाम के आलिमो ने साइंस को इबादत की एक शक्ल के तौर पर देखा | जिस में यह अल्लाह के पहेलियों और इस के कामो को समझने का एक तरीका था

अल-ख़्वारिज़्मी एक मशहूर मैथमैटिशन थे | जिस ने अलजब्रा (Algebra ) तैयार किया | “अल-किताब अल-मुक्तसर फि-हिसाब अल-जबर वल-मुकाबला” (The Compendious Book on Calculation by Completion and Balancing) आज भी मैथमैटिशन की अहम किताब समझी जाती है | अलजब्रा (जिसका नाम उन्ही के नाम पर रखा है ) ने मैथमैटिक और इंजिनीरिंग के शोबों (क्षेत्रो )में इंक़लाब बरपा किया |

 इब्न अल-हैथम जिस ने ऑप्टिक यानि प्रकाश विज्ञानं को समझा और इस पर बहुत से काम किये | उनको मॉर्डन ऑप्टिक का बाप समझा जाता है | उन्हों ने रौशनी के अज़तरब (reflexion aur refraction) समझा और पहला कैमरा (obscura) बनाया | जिस में रोशनी के रास्ते को कंट्रोल किया गया | इस को अब भी फोटोग्राफी और ऑप्टिक साइंस में इस्तेमाल किया जाता है

अल-राज़ी जिस ने केमिस्ट्री और मेडिकल साइंस में हिस्सा लिया | उन्हों ने  पहली बार अल्कोहल का  इस्तेमाल किया और बहुत सी दवाएं तैयार किया | इन की “किताब अल-हावी” दुनिया की पहली  तिब्बी मेडिकल थी 

इब्न-सिना, जिन्हें पश्चिमी दुनिया में अविसेना के नाम से जाना जाता है, ने चिकित्सा विज्ञान और फ़लसफ़े में बहुत से सेवाएँ दीं। उनकी किताब “दी कैनन ऑफ़ मेडिसिन” एक बेहतरीन चिकित्सा पाठ है, जिसमें उन्होंने मानव शारीरिक संरचना और बीमारियों के बारे में विस्तार से लिखा है। यह किताब एक अरसे तक यूरोपीय विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती रही।

खगोलशास्त्र-(Astronomy)

इस्लामी स्कॉलर्स ने भी फ्लकीआत में अपना बड़ा हिस्सा डाला। इस ने न सिर्फ़ क़दीम तहज़ीबों के काम को समझा बल्कि आसमान को भी नए अंदाज़ में दरयाफ़्त किया। जदीद दूरबीनों की आमद से पहले मुसलमान फ्लकीआत दानों ने अपनी आंखों से बहुत से बड़े सितारों और सैयारों का मुशाहिदा किया।

अल-बत्तानी-(Al-Battani)

अल-बत्तानी एक प्रसिद्ध खगोलशास्त्री थे | जो तारों की गति और दिशा को समझते थे तथा उनकी अस्थानो  का सटीक अनुमान लगाते थे। उन्होंने अपने परिणामों को सटीक ज्यामिति और त्रिकोणमिति के माध्यम से सिद्ध किया। उन्होंने एक सटीक कैलेंडर भी बनाया, जो इस्लामी कैलेंडर के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

अलतूसी ने एक फलकीआती मॉडल तैयार किया जिसे तूसी जोड़े (Tusi-couple) कहा जाता है, जो सैयारों ( planets)की हरकत को दुरुस्त तरीके से बयान करता है। अपने मुशाहिदात (observations )  से इस ने अपने ज़माने की फलकीआत (astronomy ) को एक नई दिशा दी।

इस्लामी तहजीब ने मेडिकल साइंस में बहुत अहम किरदार अदा किया है l उन्हों ने मेडिकल प्रोसेदूरेस, सर्जरी और एनाटोमी में खुसूसी ताऊन किया l 

अल-ज़ह्रावी को सर्जरी और मेडिकल उपकरणों का पिता माना जाता है। अपनी किताबों में उन्होंने सर्जरी की तकनीकों और उपकरणों को बयान किया, जो आज के आधुनिक सर्जिकल तरीकों का हिस्सा बन चुके हैं। अपने काम में उन्होंने खासतौर पर गायनकोलॉजी और प्रसूति पर तवज्जो दी। 

खून के दौर को समझने का सेहरा इब्न-अल-नफ़ीस को दिया जाता है। उन्होंने सबसे पहले बताया कि खून दिल से फेफड़ों की तरफ़ सफ़र करता है और ऑक्सीजन के साथ मिलने के बाद दोबारा जिस्म में दौड़ता है।

इस्लामी मुफक्किरीन ने भी फ़लसफ़े(philosophy ) में अपना अहम हिस्सा डाला। उन्होंने यूनानी और रूमी फ़लसफ़े को समझा और अपनी सोच को आगे बढ़ाने के लिए उसका इस्तेमाल किया। इस्लामी फ़लसफ़े ने अक़ली सोच और लॉजिक पर तवज्जो दी, जिसने दुनिया के कई नामवर मुफक्किरीन और फ़लसफ़ियों को मुतास्सिर किया।

अल-फ़ाराबी को “दूसरा उस्ताद” कहा जाता है (पहला उस्ताद अरस्तू को कहा जाता था)। उन्होंने अख़लाक़, माबआदलतबीयात और सियासत पर ग़ौर किया। उन्होंने अरस्तू और अफ़लातून के फ़लसफ़े को इस्लामी फ्रेमवर्क में रखा और एक मुनासिब समाज का तसव्वुर दिया।

इस्लामी तहज़ीब ने फ़न-ए-तामीर और फ़न में भी अहम किरदार अदा किया। इस्लामी फ़न और फ़न-ए-तामीर का अपना अलग अंदाज़ है, जिसमें हिंदसी नमूनों, ख़त्ताती और मेहराब का इस्तेमाल किया गया है।

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गुम्बद-ए-रॉक-(Dome of the Rock):-यरूशलम में स्थित चट्टान का गुम्बद (Dome of the Rock) , एक इस्लामी ऐतिहासिक निशान फ़न-ए-तामीर को पूरी दुनिया में सराहा गया है। इसका पेचीदा टाइल का काम और अरबी डिज़ाइन अब भी दुनिया के सबसे खूबसूरत और पेचीदा डिज़ाइनों में शुमार किए जाते हैं।

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स्पेन में स्थित अलहम्ब्रा एक मशहूर इस्लामी किला है l जो इस्लामी फन और तामीर का एक नमूना है l इस के पेचीदा डिजाइन और ख़त्ताती (calligraphy) ने दुनिया को जदीद फन-तमीरी को मुतास्सिर किया है 

इस्लामी तहजीब ने दुनिया को बहुत से अजीम शायरों और लेखकों की खिदमत अता की है l रूमी हाफिज और उमर कैयाम जैसे शायरो ने अपने अपनी शायरी के जरिए दुनिया को एक नई फिक्र दी l अपनी बातों से इस ने इंसान की जोहर और उस की दिल के जज्बात को समझा l 

रूमी जो एक सूफी थे l उन्हों ने अपने कलाम के जरिये दुनिया को अमन व सुकून का पैग़ाम दिया l उन की नज्मे आज भी पूरी दुनिया मे पढ़ी जाती है l और उन का काम रुहानियत और अंदरूनी सुकून का एक अहम हिस्सा बन चुका है l

इस्लाम सिर्फ़ एक मज़हब नहीं,बल्कि ज़िंदगी गुज़ारने का तरीक़ा है,जो इंसान को बेहतर और खुशहाल जीवन जीने की राह दिखाता है। इस्लाम की तालीमात अपना कर हम अमन,इंसाफ़ और तरक़्क़ी क़ायम कर सकते हैं। दुनिया की तरक़्क़ी में इस्लामी तहज़ीब का बड़ा योगदान है। इल्म,साइंस,आर्ट और फ़लसफ़ा में इस्लामी विद्वानों ने नई खोजें कीं,जो आज भी दुनिया को प्रभावित करती हैं। यह ब्लॉग इस्लाम के अहम अफ़कार,उसके पांच स्तंभों और तालीमात को समझने में मदद करता है,जो ज़िंदगी में बेहतरी लाने का रास्ता दिखाता है।

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